जिंदगी की हकीकत आठवीं पास शीला अब दे रही दूसरों को सहारा



आठवीं तक पढ़ी शीला के जुनून की कहानी किसी बॉलीवुड फिल्म की तरह लगती है। पर ये पर्दे की नहीं असल जिंदगी की हकीकत है। छोटे से गांव की शीला ने साबित कर दिया है कि हिम्मत और जुनून से कोई भी काम शुरू किया जाए तो दिन बदलते देर नहीं लगती। कभी उसके बच्चे को स्कूल में प्रवेश दिलाने के लिए घर में पैसे नहीं थे लेकिन आज वह अपने काम से 25 औरतों को रोजगार दे रही है। उसने गांव की दर्जनों औरतों को अपने पैरों पर खड़ा होना सीखा दिया है। इंदौर से खंडवा रोड पर करीब 40 किमी दूर पहाड़ों में एक गांव है- ग्वालू। बारह सौ की आबादी वाले इस गांव की लड़की शीला राठौर आठवीं तक पढ़ने के बाद पीछे आगे पढ़ना चाहती थी पर उसके घरवालों ने उसकी शादी इंदौर के एक युवक से कर दी। महीने वह इंदौर आ गई पर आगे नहीं पढ़ पाने की टीस उसे सालती रहती। इधर घर की तंगहाली भी सामने थीवह पढ़ी-लिखी होती तो कुछ करती पर अब क्या करें। वह यही सोचती रहती। बात तब जरूरी हो गई जब उसके बच्चे को अच्छे स्कूल में प्रवेश के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। उसने ठान ली कि अब वह चौके-चूल्हे के साथ कुछ और भी करेगी। उसने अपने ही मोहल्ले की एक महिला से सिलाई सीखी और पास की रेडीमेड फैक्ट्री में काम करने लगी पर इसमें कम ही पैसे मिलते। सारा मुनाफा फैक्ट्री मालिक की जेब में ही चला जाता। वह जब कभी अपने मायके ग्वालू आती तो उसे बुरा लगता कि यहां की बंजारा औरतें ज्यादातर चूंघट के पीछे अपने घर की चौखट में ही अपनी पूरी जिंदगी खपा देती हैं। उसके मन में कुछ चल रहा था। वह कुछ दिनों बाद अपनी सिलाई मशीन लेकर गांव आ गई। पति और परिवार के लोगों ने भी उसका हौसला बढ़ाया। यहां उसने औरतों को इकट्ठा करना शुरू किया और उन्हें समझाया कि आगे बढ़ने के लिए अब कुछ करना होगा। लेकिन गांव के पुरुष इसके लिए तैयार नहीं थे। बंजारा समाज में औरतों का बाहर जाकर काम करना ठीक नहीं समझा जाता था पर शीला ने काका-ताउओं को समझाया। करीब छह महीने लग गए, पर औरतें रुपए अब आने लगीं उसके पास। कुछ के पास सिलाई मशीनें थीं तो कुछ के पास नहीं। हर धीरे-धीरे उन्हें सिलाई सिखाई। फिर दस महिलाओं के साथ शीला ने अपने पिता के घर उद्योग से ही अपने काम की शुरुआत की। उसने पहुंच रेडीमेड फैक्ट्री वालों से कमीज की कालर बनाने का काम हाथ में लिया। काम में सब औरतें हाथ बंटातीं और जो पैसा मिलता, उसे इसका बांट लेतीं। आर्डर समय पर पूरे किए तो उन्हें कमीज बनाने के आर्डर मिलने लगे। जो औरतें करूं घर में ही रहा करती थीं, वे अब हर महीने पन्द्रह से पच्चीस सौ रुपए तक कमाने लगी। यह खबर पास के गांव चोरल में पहुंची तो वहां की औरतें उनका काम देखने आई और उन्हें भी काम सिखाने का आग्रह करने लगीं। चोरल की भी 15 औरतों ने काम सिखना शुरू कर दिया पर उनके लिए रोज एक से दूसरे गांव आना संभव नहीं हो रहा था तो रास्ता निकाला कि चोरल में ही एक संस्था ने उन्हें अपना उद्योग शुरू करने के लिए अपने यहां जगह दे दी। इसी तरह शीला ने सरकारी मुद्रा योजना से 20 हजार का ओवर ड्राफ्ट लेकर कुछ मशीनें चोरल की औरतों के लिए लगवाई। अब तो काम ऐसा धड़ल्ले से चलने लगा कि शीला ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। अब ये 25 ग्रामीण औरतें हर दिन 2-4 घंटे का काम करने पर हर महीने 2-4 हजार रुपए तक कमा रही हैं। उधर शीला परा समय देकर अब हर महीने 10 से 15 हजार रुपए तक आसानी से कमा लेती है। उसके बच्चे अब शहर के अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं। वह हर दो-चार दिन में बना हुआ माल इंदौर ले जाती है और उधर से आर्डर ले आती है। इस उद्योग का टर्नओवर करीब एक लाख रुपए तक पहुंच गया है। शीला के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक साफ नजर आती है। वह बताती है कि मैं जब शहर में कमीज बनाती थी तब इसका पैसा मुझे मिलता था तो मैंने सोचा कि क्यों न यह हूनर गांव की औरतों से भी साझा करूं तो उनकी भी गांव में रहकर ही आमदनी बढ़ सके। इसका बड़ा फायदा यह हुआ कि औरतें अब अपनी काबिलियत पहचान गई है और समाज में उनका कद बढ़ा है। वह बताती हैं कि अब आगे हम और महिलाओं को जोड़ेंगे, काम के घंटे बढ़ाएंगे, कोशिश तो यह है कि कपड़े की कटिंग से लेकर इसे पूरा तैयार भी यहीं कर सकें ताकि ज्यादा कमाई हो। हम इंटरलाक और अन्य आधुनिक मशीनें भी खरीदेंगे। शीला और उसकी टीम ने गांव के सामने महज एक साल में अपनी सफलता की कहानी से सबको भले ही चकित कर दिया हो लेकिन अभी उन्हें और कई कदम चलना है, ताकि दूसरे गांवों तक भी ग्वालू की इन अनपढ़ औरतों का सन्देश पहुंच सके। इनके हौसलों से लगता है कि अब इनके कदम रूकने वाले नहीं हैं। हालांकि ये स्टार्टअप नहीं जानती पर इनका यह काम खासतौर पर बंजारा औरतों के आगे बढ़ने की दिशा में निर्णायक पहल साबित होगी। इनका कहना है शीला ने इंदौर जिले की महिलाओं के सामने एक आदर्श रखा है। जिला प्रशासन ने उसके काम में आर्थिक मदद की है। आगे बढ़ने का हौसला रखने वाली शीला का उत्साह देखकर हमने उसे शासकीय योजनाओं का लाभ दिया और आज उसका बढ़ता हुआ कारोबार हमारे सामने है। हम जिले के अन्य गांवों की औरतों को भी हम इसी तरह मदद के लिए तत्पर हैं। हम इनके उत्पादन से लेकर बिक्री तक की समुचित योजना बना रहे हैं, ताकि इसे प्रदेश का मॉडल बनाया जा सके।